स्वर्णों को आरक्षण देने का रचा है हाटीयों के नाम पर केंद्र ने षड्यंत्र सबसे ज्यादा OBC को नुकसान

केंद्र सरकार हाटी समुदाय को एसटी की कैटेगरी में डाल कर न सिर्फ गुर्जर समुदाय बल्कि समस्त देश के आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही है और इस बात का कोई जवाब नही दे रहा की जो क्षेत्र अभी तक पिछडा नहीं था अचानक से कैसे इतना पिछड़ गया की उन्हें अनुसुचित जनजाति में शामिल किया गया। भाजपा सरकार द्वारा हाटी समुदाय के नाम पर स्वर्ण जातियों को दिया आरक्षण संवैधानिक मुल्यों के खिलाफ है।

सालों से शासक रहे वर्गों को घुमंतू गुर्जर समाज व अन्य जनजातियों के साथ कैसे रखा जा सकता है। जो सामाजिक धरातल पर समान नहीं है उन्हें आरक्षण की एक कैटेगरी मे रखने की इजाजत संविधान नहीं देता। इस आरक्षण बिल का फायदा केवल स्वर्ण जातियों के रसूखदार लोगों को ही होगा। हाटी कोई समुदाय नहीं है बल्कि स्वर्ण जातियों को चोर तरीके से आरक्षण देने के लिए इजाद किया गया एक तरीका है। ऐतिहासिक तौर पर हाटी समुदाय का कोई अस्तित्व नहीं है।

केंद्र सरकार ने रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की पुरानी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए चुनावी लाभ के लिए हाटी बिल राज्यसभा में पास किया है। गौर की बात तो यह है कि यह बिल को बिना सार्थक बहस, विचार विमर्श और भूतकाल में आरजीआई द्वारा लगाई गई अपतियों को दरकिनार कर पास किया गया है और यह किसी तरह से भी न्यायसंगत नही है। केंद्रीय हाटी समिति ने इस मामले में गुमराह किया है और अब सर्व साधन संपन्न लोग आरक्षण का फायदा उठायेंगे जिससे न सिर्फ प्रदेश स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर आरक्षण की व्यवस्था कमजोर होगी।

काँग्रेस पार्टी भी इस बिल का समर्थन कर रही जिससे इसके पिछड़े वंचित वर्ग के हितैषी होने के दावे की भी पोल खुल गई है। माननीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि यह क्षेत्र 13000 फुट की ऊँचाई पर है परंतु वस्त्विकता में या मात्र 7000 फुट है क्या अब हर उस क्षेत्र को एसटी में शामिल कर किया जायेगा जो 7000 फुट की ऊँचाई से नही है।

बिल के समर्थन के एक मात्र तर्क दिया कि यह मांग बहुत पुरानी थी परतुं इस बात पर भी विचार किया जाए कि यदि मांग न्यायसंगत होती तो इसे पहले ही मान लिया जाता आखिर क्यों जो मांग गिरी पार के क्षेत्र के पिछड़ेपन के कारण शुरू हुई उसे अब तथाकथित हाटी समुदाय के नाम पर पूरा किया जा रहा है।

हमने पहले भी याचना भेज कर राष्ट्पति से इस संबंध में गुजारिश की थी और अब फिर से आग्रह करते है कि इस बिल पर हस्ताक्षर न करें और पुनर्विचार के लिए भेजें क्यूंकि ये आरक्षण की व्यवस्था को कमजोर करने की साजिश है और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। जरूरत पड़ने पर हम उच्चतम न्यायालय मे इस अन्याय के खिलाफ गुहार लगाएंगे।

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