पांवटा साहिब में वायरल वीडियो बना बहस का केंद्र, SDM गुंजित सिंह चीमा को मिला जनता का अपार समर्थन

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पांवटा साहिब, अमित कुमार

पांवटा साहिब में प्रशासन और राजनीति के बीच एक नया मोड़ तब आया जब सोशल मीडिया पर एसडीएम गुंजित सिंह चीमा और भाजपा नेता डॉ. राजीव बिंदल के बीच हुई नोकझोंक का वीडियो तेजी से वायरल हो गया। यह वीडियो अब सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि प्रशासनिक ईमानदारी और राजनीतिक दखल के बीच खिंची एक स्पष्ट रेखा बन गया है।

पांवटा साहिब के माजरा-किरतपुर में मुस्लिम लड़के द्वारा हिंदू लड़की को भगाने के मामले में एक ओर जहां राजनीतिक लोग भीड़ पर रोटियां सेक रहे थे, वहीं दूसरी ओर पांवटा साहिब के प्रशासनिक अधिकारी गुंजित चीमा और पुलिस अधिकारी दो समुदायों के बीच दीवार बनकर खड़े थे ताकि दोनों ही समुदाय सुरक्षित रह पाएं।

भाजपा जहां इस वीडियो को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने में जुटी है, वहीं आम जनता, किसान संगठन, युवा वर्ग और सोशल मीडिया यूज़र्स एसडीएम गुंजित सिंह चीमा की कार्यशैली की खुलकर सराहना कर रहे हैं। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर लोग उन्हें “जनसेवा का प्रतीक” और “पांवटा साहिब का सच्चा सेवक” कह रहे हैं।

✅ ईमानदारी और निडरता की मिसाल बने एसडीएम
एसडीएम गुंजित सिंह चीमा को लेकर लोगों का कहना है कि वे दिन-रात बिना किसी भेदभाव के हर समुदाय के लोगों के बीच विश्वास बनाए रखने का कार्य कर रहे हैं। उनका प्रशासनिक कार्य करने का तरीका तेज, पारदर्शी और जनहितकारी है। युवाओं को नशे से दूर रखने के लिए उनके द्वारा चलाए गए अभियान हों या किसानों की समस्याएं सरकार तक पहुंचाना—हर मोर्चे पर वह सक्रिय रहते हैं।

👥 जनता के बीच गहरी पकड़
स्थानीय किसान संगठनों ने भी मीडिया से बातचीत में कहा कि एसडीएम चीमा हर किसान की आवाज को प्रशासनिक गलियारों से उठाकर सरकार तक पहुंचाते हैं। वह किसी भी राजनीतिक दबाव में नहीं आते और हर फैसला जनहित में करते हैं। कई वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि ऐसा ईमानदार और संवेदनशील अधिकारी पांवटा में वर्षों बाद देखने को मिला है।

🚨 खुद फील्ड में उतरकर निभाई ज़िम्मेदारी
बीते दिनों जब एक संवेदनशील स्थिति में क्षेत्र की महिलाओं और लोगों की सुरक्षा का प्रश्न उठा, तो एसडीएम चीमा स्वयं घटनास्थल पर पहुंचे और बिना किसी भय के लोगों की जान बचाने के लिए मोर्चा संभाला। उनकी यह तत्परता और निडरता उन्हें आम अधिकारियों से अलग बनाती है।

राजनीतिक हस्तक्षेप पर जनता की तीखी प्रतिक्रिया

जनता का कहना है कि कुछ नेता अपनी राजनीतिक चमक बढ़ाने और चर्चा में रहने के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। लोग यह भी कह रहे हैं कि ऐसे नेताओं को पहले अपने कामों का मूल्यांकन करना चाहिए, फिर प्रशासन पर सवाल उठाना चाहिए।