बेसहारा बच्चों को मिला जीने का हक, सुखाश्रय योजना का विधेयक विधानसभा में ध्वनिमत से पारित

मुख्यमंत्री की ड्रीम स्कीम सुख आश्रय योजना अब कानून के रूप में हिमाचल में लागू होगी। इस बारे में विधानसभा में लाया गया विधायक एक लंबी चर्चा के बाद गुरुवार को पारित हो गया।*

*मुख्यमंत्री ने दावा किया कि इस तरह का कानून पूरे देश में किसी राज्य में नहीं है, जिसमें बेसहारा बच्चों को जीने का हक दिया गया हो। अनाथ बच्चों को इससे पहले दया के भाग से देखा जाता था।*

उनकी मदद की जाती थी, लेकिन इस कानून के बनने के बाद यह दया का भाव खत्म हो गया है। अब हर अनाथ बच्चा राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। उसके रहने, पढऩे, खाने-पीने से लेकर घूमने-फिरने तक का इंतजाम सरकार करेगी। 27 साल की आयु होने के बाद घर बनाने के लिए चार बिस्वा जमीन देगी और वित्तीय मदद भी की जाएगी। हायर एजुकेशन के लिए पूरी फीस राज्य सरकार देगी और स्वरोजगार शुरू करने के लिए भी वित्तीय मदद दी जाएगी।
करीब 6000 बच्चों को इसका लाभ होगा और सालाना 270 करोड़ सरकार इस पर खर्च करेगी। इसके लिए 101 करोड़ रुपए की एफडी बनाई जा रही है। हालांकि चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि जो प्रावधान इस अधिनियम में किए जा रहे हैं, वे जूविनाइल जस्टिस एक्ट में पहले से हैं। सरकार ने सिर्फ नाम बदला है। भाजपा विधायकों विनोद कुमार, सुखराम चौधरी, जनक राज और हंसराज के अलावा निर्दलीय विधायक केएल ठाकुर ने भी अपने विचार रखे। आखिर में मुख्यमंत्री के जवाब के बाद ध्वनिमत से इस कानून को पारित कर दिया गया। इसी तरह ग्राउंड वॉटर एक्ट में संशोधन का विधेयक जो बुधवार को विधानसभा में रखा गया था, वह भी पारित कर दिया गया। इसमें भाजपा विधायकों जनक राज और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर की ओर से हालांकि यह मांग जरूर की गई की ग्राउंड वाटर का दुरुपयोग करने पर जेल की सजा रखनी चाहिए। चाहे अवधि कम कर दी जाए उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने तर्क दिया कि यह प्रावधान सिर्फ उद्योगपतियों के लिए किया जा रहा है और सिंगल विंडो से अनुमति देने के बाद यदि पानी से संबंधित कोई वाली शिकायत होती है, तो सरकार कम से कम जेल नहीं करेगी। जुर्माने की राशि को अधिकतम 1000000 की रखा गया है। उप मुख्यमंत्री के जवाब के बाद इस विधेयक को भी पारित कर दिया गया।

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