कर्ज मुक्ति के लिए करें, “ऋणहर्ता स्तोत्र” का पाठ…

मनुष्य के जीवन में कई बार ऐसा समय आता है कि उसे ना चाहते हुए भी कर्ज लेना पड़ता है। एक बार कर्ज लेते ही यह बोझ रोज ही बढ़ता जाता है। यदि आप पर कर्ज पर कर्ज बढ़ता जा रहा है तो आपको भगवान गणपति की शरण में जाना चाहिए। ज्ञान, बुद्धि, सुख – समृद्धि के देवता गणपति जी कर्ज से मुक्त करने वाले भी माने गए हैं। धन – संपदा का आशीर्वाद देने वाले गणपति जी की पूजा बुधवार को करने के साथ ही यदि उनके चमत्कारिक ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ कर लिया जाए तो किसी भी तरह का मनुष्य पर कर्ज क्यों न हो वह उतर जाता है।

कृष्णयामल ग्रंथ में हर प्रकार के ऋणों से मुक्ति देने वाले एक ही मंत्र को बताया गया है और यह मंत्र है- ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र। इस स्त्रोत के बारे में सर्वप्रथम शंकर जी ने देवी पार्वती को बताया था। कथा के अनुसार एक बार कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती बैठे हुए थे, तभी देवी ने शिवजी से पूछा कि हे देव, ‘आप समस्त शास्त्रों के ज्ञाता हैं तो आप मुझे यह बताएं कि यदि कोई किसी भी तरह के ऋण का भागी बनता है तो वह इससे कैसे मुक्त हो सकता है। तब शिवजी ने बताया, हे देवी ‘आपने संसार के कल्याण की कामना से यह बात पूछी है, इसे मैं जरुर बताऊंगा। तब उन्होंने बताया कि आपके पुत्र गणेश ही ऋणहर्ता हैं। उनका ‘ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र’ हर प्रकार के कर्जों से मुक्ति दिलाने वाला है।’ ध्यान रहे इस पाठ को करने से पहले गणेश जी का ध्यान और पूजन जरूर करना चाहिए।

।। ध्यान ।।
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।

।। मूल-पाठ ।।
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फल-सिद्धये।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।१
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।२
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।३
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथः प्रपुजितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।४
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।५
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धये।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।६
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायकः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।७
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।८
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहितः।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्।।

भगवान गणपति के इस पाठ का जाप हमेशा शांत मन से एकांत में बैठकर करना चाहिए।

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