सिरमौर के इतिहासिक गांव टिटियाना में हो रहे शाठी एवं पाशी भाइयों का ऐतिहासिक मिलन लगभग 120 वर्ष बाद हो रहा है ऐसा ऐतिहासिक महापर्व महासू महाराज की छत्रछाया में चौतरा प्रांगण में समस्त पहाड़ी क्षेत्र की कुलदेवी और अष्टधात्री एवं काली स्वरूपा माता ठारी माता की स्तुति हेतु शांत महायज्ञ आयोजित किया गया। टिटियाना गांव में चौंतरे की स्थापना सिरमौर के राजा ने गिरिपार क्षेत्र में सामाजिक राजनीतिक धार्मिक तथा न्याय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए की गई थी।
ज्ञात रहे कि समस्त ठुंडू बिरादरी की तरफ से इस शांत अनुष्ठान में भेंट स्वरूप एक बड़ा भंडारे में खाना पकाने के लिए डब्बा तथा 110111 रुपये की नकद राशि प्रदान की। ठुंडू बिरादरी पहाड़ी क्षेत्र की सबसे बड़ी खैल (आबादी) के रूप में जानी जाती है। इस दिव्य एवं भव्य शात महायज्ञ पर्व में भाट (ब्राह्मण) – खश (राजपूत) के संगम स्वरूप ठुंडूओं का विशाल जनसमूह शांत भंडारे के अंतिम दिन टिटियाना पहुंचा। टिटियाना गांव के भाट (ब्राह्मणों) के साथ ठुंडू खश (राजपूत) का सदियों पुराना और ऐतिहासिक भाईचारा है।
इस महामिलन कार्यक्रम में ठुंडू बिरादरी को विशेष निमंत्रण प्राप्त था। टिटियाना गांव के ब्राह्मणों के साथ ठुंडू राजपूत का सदियों पुराना और ऐतिहासिक भाईचारा है। इसलिए इस ऐतिहासिक महा शांत महायज्ञ में हामल परगना, चेहता परगना, सिरमौर जिला, शिमला तथा उतराखंड के जोंसार बाबर में बसे सबसे बड़ी खैल के ठुंडू खश को विशेष निमंत्रण प्राप्त था। इस महायज्ञ में टिटियाणुआं भाट (ब्राह्मण) व ठुंडू बिरादरी (राजपूत) के भाईचारे की अनोखी और अद्भुत झलक देखने को मिली।
सनंद रहेगी ठुंडू बिरादरी की भी कुलदेवी ठारी माता ही है। इसलिए इस महापर्व एवं मिलन समारोह का ऐतिहासिक महत्व बढ़ जाता है।
हिमालय के उत्तराखंड के क्षेत्र में शांत महायज्ञ पर्व का बहुत महत्व है। हिमालय के पहाड़ों को काली माता का निवास स्थान माना जाता है। काली का दूसरा स्वरूप ठारी माता माना जाता है जिसको पूरे हिमालय क्षेत्र में पूजा जाता है। माता को खुश एवं शांत करने के लिए ही इस तरह के महापर्व का आयोजन किया जाता है टिटियाना में आयोजित हुए शांत का विशेष महत्व यह है कि यहां दोनों भाई शाठी और पांशी एक जगह एकत्रित हुए। शाठी – पाशी के चौतरें में हुआ अद्भूत महाआयोजन, उमड़ा आस्था का सैलाब। समारोह उपरांत ठुंडू बिरादरी के वरिष्ठ सदस्यों ने टिटियाना वासियों के इस शांत महायज्ञ समारोह हेतु प्रबंधन और आयोजन के लिए सरहाना की तथा आतिथ्य सतकार के लिए धन्यवाद किया।
चार दिवसीय ठारी माता शांत महापर्व के आखिरी दिन ठुंडू बिरादरी के शामिल होने के साथ ही महायज्ञ का समापन
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