सिरमौर जिले में वन अधिकार कानून लागू करने में लापरवाही

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सैकड़ों दावे वर्षों से लंबित, ज़िला प्रशासन से त्वरित कार्रवाई की मांग
सिरमौर वन अधिकार मंच से जुड़े संगठनों, ग्राम सभाओं, वन अधिकार समितियों के सदस्यों तथा वन अधिकार कानून 2006 के तहत दावेदारों ने जिला सिरमौर में इस कानून के सुस्त क्रियान्वयन पर गंभीर आपत्ति जताई है। आज मंच द्वारा उपायुक्त सिरमौर को एक ज्ञापन सौंपकर जिला स्तरीय एवं उप-मंडल स्तरीय समितियों में लंबित दावों पर शीघ्र और ठोस निर्णय लेने की मांग की गई।
सिरमौर वन अधिकार मंच के संयोजक धनीराम शर्मा ने कहा कि “वन अधिकार कानून 2006 अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासियों को उनके संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया था। बावजूद इसके, जिला सिरमौर में अब तक एक भी पात्र दावेदार को पट्टा (टाइटल) स्वीकृत नहीं किया गया है। यह स्थिति प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे दावों और ज़मीनी हकीकत के बीच गंभीर विरोधाभास को उजागर करती है”।
मंच के सचिव गुलाब सिंह ने बताया कि “31 अगस्त 2025 को भी जिला प्रशासन को पत्र लिखकर जिला स्तरीय समिति (डीएलसी) में लंबित 117 दावों (61 अनुसूचित जनजाति – गुज्जर समुदाय तथा 56 अन्य परंपरागत वन निवासियों) पर बैठक आयोजित कर निर्णय लेने की मांग की गई थी। लेकिन एक माह बीत जाने के बाद भी किसी प्रकार की प्रगति नहीं हुई”।
इसी प्रकार, उप-मंडल स्तरीय समितियों (एसडीएलसी) में भी 106 दावे अटके हुए हैं — संगड़ाह में 91, पांवटा साहिब में 6 और नाहन में 9 दावे। इन मामलों के अलावा, सैकड़ों दावे ग्राम सभा स्तर पर ही फंसे हुए हैं क्योंकि राजस्व और वन विभाग के अधिकारी समय पर जाँच-पड़ताल पूरी नहीं कर पा रहे हैं और न ही वन अधिकार समितियों को अपेक्षित सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
प्रतिनिधियों ने कहा कि यह स्थिति वन अधिकार कानून की मूल भावना और उसमें निहित संवैधानिक गारंटियों का उल्लंघन है। राज्य सरकार एक ओर पूरे प्रदेश में इस कानून के तहत लोगों को लाभ पहुंचाने का दावा करती है, जबकि वास्तविकता यह है कि सिरमौर जैसे ज़िले में एक भी परिवार को आज तक उसका वैध अधिकार नहीं मिला।
ज्ञापन के माध्यम से मंच ने प्रशासन के सामने तीन प्रमुख माँगें रखी हैं:
1. जिला स्तरीय समिति की बैठक एक सप्ताह के भीतर अनिवार्य रूप से आयोजित की जाए और सभी 117 लंबित दावों पर निर्णायक कार्यवाही की जाए।
2. सभी उप-मंडल स्तरीय समितियों को तत्काल निर्देश जारी किए जाएँ कि वे अपने स्तर पर लंबित दावों की समयबद्ध समीक्षा करें, उन्हें जिला स्तरीय समिति को भेजें तथा यदि दावों में कोई कमी है तो उसकी लिखित सूचना संबंधित वन अधिकार समितियों को उपलब्ध कराएँ।
3. राजस्व और वन विभाग के अधिकारियों (पटवारी एवं वन रक्षक) को कड़े आदेश दिए जाएँ कि वे जांच प्रक्रिया में पारदर्शी सहयोग करें और वन अधिकार कानून, 2006 के अंतर्गत अपने वैधानिक दायित्वों का निर्वहन करें।
मंच से जुड़े शिली महल वन अधिकार मंच के नेत्र शर्मा ने कहा कि यदि प्रशासन अब भी ठोस कदम नहीं उठाता तो दावेदार समुदायों को आंदोलन का रास्ता अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
गुज्जर उत्थान संगठन के लियाकत अली ने कहा कि यह केवल कानूनी या प्रशासनिक मामला नहीं है, बल्कि जीवन और आजीविका से जुड़ा हुआ मुद्दा है। अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों की पीढ़ियाँ अपने अधिकारों से वंचित हैं, जबकि वे सदियों से जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहे हैं।
अंत में मंच के प्रतिनिधियों ने उम्मीद जताई कि जिला प्रशासन और राज्य सरकार तुरंत संज्ञान लेंगे तथा सिरमौर ज़िले के दावेदारों को न्याय दिलाने के लिए समयबद्ध कार्यवाही करेंगे। उपायुक्त से मुलाकात के दौरान मंच के सदस्यों के साथ कैप्टन सलीम, धर्म सिंह, सैफ अली आदि विभिन्न संगठन, वन अधिकार समिति के सदस्य व दावेदार मौजूद रहे।