देव भूमि हिमाचल प्रदेश का निर्माण करने वाला वह अद्भुत व्यक्तित्व जिसके व्यक्तित्व पर लिखना, समझना ,विश्लेषण करना मानों सूरज के आगे दीपक दिखाना हो,जिस व्यक्ति ने जीवन में अनेकों उदाहरण और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य को पूर्ण राज्य बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाई तो वहीं जो बहु शिक्षाविद और अनेकों उपाधियों के धनी व्यक्ति रहे हैं, तो वहीं जो ईमानदारी की प्रतिमूर्ति रहें हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री से लेकर अनेकों बार मुख्यमंत्री बने, जो व्यक्ति सादगी के लिए भी ख़ासे लोकप्रिय रहें, जिनके जीवन के बारे में जितना पढ़ा जाएं,समझा जाएं उतना ही कम होगा, ऐसे ख़ास व्यक्तित्व थे, हिमाचल प्रदेश के निर्माता स्व डॉ यशवन्त सिंह परमार जी जिनकी जयंती दो मई को हर वर्ष मनाईं जाती है।
डॉ. यशवंत सिंह परमार हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे। हिमाचल प्रदेश के गठन में उनका अहम योगदान रहा था।
अगर डॉ यशवन्त सिंह परमार जी के जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करने और विश्लेषण करने का प्रयास किया जाएं तो, निसंदेह एक बात जरूर निकलकर सामने आती है। कि डॉ यशवन्त सिंह परमार जी के जीवन को पढ़ा गया, समझा गया, परन्तु उनके आदर्शों,जीवन शैली और उनकी शिक्षाओं को हमने अपने जीवन में नहीं उतारा। जिसकी आज के परिप्रेक्ष्य में शायद सबसे ज्यादा जरूरत और दरकार भी है, क्योंकि डॉ यशवन्त सिंह परमार जी का एक ऐसा ख़ास व्यक्तित्व रहा जो राजनीति से ऊपर उठकर,समाज, क्षेत्र के लिए जिन्होंने अपनी अलग पहचान स्थापित की, जो एक सर्वमान्य नेता या फिर जिन्होंने जननायक की परिभाषा को चरितार्थ किया। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के हर व्यक्ति और युवाओं को ऐसे ख़ास व्यक्तित्व के जीवन की अनमोल शिक्षाएं और उनके जैसा बेदाग और हिमाचल प्रदेश की नींव रखने और अपनी पहाड़ी भाषा, पहाड़ी संस्कृति, सभ्यता और रिति रिवाजों, ईमानदारी और सादगी भरे जीवन को अपने जीवन में उतारक जिसको उन्होंने चरितार्थ भी किया। आज हम सभी उनके पदचिन्हों पर चलते रहे, और हिमाचल प्रदेश के विकास और अपने जीवन को कही ना कही समाज हित और प्रदेश हित में समर्पित किया जाएं।
यह बानगी भर है उस युग पुरुष, योगी, दार्शनिक एवं दूरद्रष्टा की, जिसने पहाड़ो की भोली-भाली, कम साक्षर व भौगोलिक परिस्थितियो से जूझ रही जनता को विकास के सपने दिखाए नही, बल्कि उनका पूरा ताना-बाना बुन कर भविष्य की राह पर अग्रसर भी किया। वह हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार ही थे, जिन्होने एलएलबी व पीएचडी होने के बावजूद धन-दौलत या उच्च पदो का लोभ नही किया, बल्कि सर्वस्व प्रदेशवासियो को पहाड़ी होने का गौरव दिलाने मे न्यौछावर कर दिया। परमार हिमाचल की राजनीति के पुरोधा व प्रथम मुख्यमंत्री ही नही थे, वह एक राजनेता से कही बढ़कर जननायक व दार्शनिक भी थे, जिनकी तब की सोच पर आज प्रदेश चल रहा है। कृषि-बागवानी से लेकर वानिकी के विस्तार सहित जिन प्राकृतिक संसाधनो पर आज प्रदेश इतरा रहा है, भविष्य का यह दर्शन उन्ही का था। वह कहा करते थे कि सड़के पहाड़ो की भाग्य रेखाएं है, और आज यही प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ है।
शिक्षा एवं स्वास्थ्य को लेकर उनका स्पष्ट विजन था, जिस पर उनके बाद की सरकारो ने पूरा ध्यान दिया, जबकि औद्योगिकीकरण के साथ विकास की रफ्तार पर भी वह चल पड़े थे। इसी तरह पशुपालन से समृद्धि की राह भी वह देखा करते थे, जिसके लिए उनके समय प्रयास भी हुए और पहाड़ो की लोक सभ्यता व संस्कृति के तो वह साक्षात उदाहरण थे, जिसके लिए उन्होने कार्य ही नही किए बल्कि वैसा ही पारंपरिक व सादगी का जीवन व्यतीत भी किया।
यशवंत सिंह परमार की ईमानदारी व पाक राजनीतिक जीवन का इससे बड़ा प्रमाण नही होगा, कि अपने अंतिम समय मे भी उनके बैक खाते मे 563 रुपये 30 पैसे थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होने कोई मकान नही बनवाया, कोई वाहन नही खरीदा, अपने परिवार के किसी व्यक्ति या रिश्तेदार को प्रभाव से नौकरी नही लगवाया और जब वह मुख्यमंत्री नही थे तो सामान्य बस मे सफर करते थे। डॉ यशवन्त सिंह परमार जी जिला सिरमौर से सम्बन्ध रखते थे।
*स्वतन्त्र लेखक-हेमराज राणा सिरमौर*