Fake Caste Certificate: फर्जी जाति प्रमाण पत्र से टीजीटी नौकरी पाने वाले शिक्षक को शिमला में बर्खास्त किया गया। 2009 की भर्ती में धोखाधड़ी का खुलासा।
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहाँ एक शिक्षक ने फर्जी अनुसूचित जाति (एससी) प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी हासिल की थी। शिक्षा विभाग ने इस धोखाधड़ी का पर्दाफाश कर शिक्षक को बर्खास्त कर दिया है। यह घटना 2009 की बैच वाइज टीजीटी भर्ती से जुड़ी है, जिसने प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की आवश्यकता को फिर से रेखांकित किया है।
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फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी हासिल
शिमला जिले की नेरवा तहसील के वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल दैया में रोशन लाल नामक शिक्षक की नियुक्ति 2009 में हुई थी। उनकी नियुक्ति एससी-आईआरडीपी आरक्षित श्रेणी के तहत की गई थी, और 28 फरवरी 2009 को उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपा गया। इसके बाद, रोशन लाल ने मातल स्कूल में अपनी सेवाएँ शुरू कीं। नियुक्ति के दौरान और मेडिकल बोर्ड के समक्ष भी उन्होंने एससी श्रेणी के दस्तावेज प्रस्तुत किए। हालाँकि, जब शिक्षा विभाग ने बैच वाइज भर्ती की वरिष्ठता सूची तैयार की, तो उनकी नियुक्ति में अनियमितताएँ सामने आईं। गहन जाँच में पाया गया कि रोशन लाल ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र का उपयोग किया था, जबकि वह वास्तव में सामान्य श्रेणी से संबंधित थे।
शिक्षा विभाग की सख्त कार्रवाई
फर्जी जाति प्रमाण पत्र का खुलासा होने के बाद शिक्षा विभाग ने त्वरित कार्रवाई की। रोशन लाल को नोटिस जारी कर उनके दस्तावेजों को निदेशालय में प्रस्तुत करने को कहा गया। जाँच के दौरान उनके बयान दर्ज किए गए, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि वह सामान्य श्रेणी से हैं। इसके आधार पर स्कूल शिक्षा निदेशक आशीष कोहली ने उनकी बर्खास्तगी के आदेश जारी किए। इस कार्रवाई ने शिक्षा विभाग की निष्पक्षता और पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाया। साथ ही, नेरवा पुलिस थाने में रोशन लाल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468, और 471 के तहत मामला दर्ज किया गया। अनुसूचित जाति बेरोजगार संघ, हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष की शिकायत पर यह कार्रवाई शुरू हुई, जिसमें आरोप लगाया गया कि रोशन लाल ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए नौकरी हासिल की। पुलिस अब उन लोगों की भी जाँच कर रही है, जिन्होंने फर्जी दस्तावेज तैयार करने में भूमिका निभाई।
कानूनी और सामाजिक प्रभाव
यह मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि आरक्षित श्रेणियों के लिए निर्धारित अवसरों के दुरुपयोग को भी दर्शाता है। फर्जी प्रमाण पत्रों के उपयोग से न केवल योग्य उम्मीदवारों का हक छिनता है, बल्कि सामाजिक न्याय की नींव भी कमजोर होती है। हिमाचल प्रदेश पुलिस और शिक्षा विभाग की इस संयुक्त कार्रवाई को सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इस मामले की जाँच अभी जारी है, और पुलिस अन्य संभावित संलिप्त व्यक्तियों की भूमिका की भी पड़ताल कर रही है।