अब पीएचसी में मिल जाएगा सर्पदंश, प्वाइजनिंग का तुरंत इलाज, प्रशिक्षित चिकित्सक देंगे जीवनरक्षक उपचार

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हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी और दूरदराज क्षेत्रों में अब सर्पदंश और विषाक्तता (प्वाइजनिंग) के मरीजों को तत्काल और प्रभावी उपचार मिल सकेगा।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) बिलासपुर में आयोजित पांचवीं राष्ट्रीय टॉक्सिकोलॉजी वर्कशॉप के माध्यम से यह संभव होगा।

यह कार्यशाला केवल वैज्ञानिक प्रशिक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि उत्तर भारत में पहली बार व्यावहारिक और सिम्युलेशन आधारित प्रशिक्षण इसमें दिया जा रहा है।

अब तक प्रदेश और अन्य राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं में इन मामलों का तुरंत प्रबंधन सुदृढ़ नहीं था। इसे मजबूत करने के लिए पहली बार उत्तरी भारत में यह कॉन्फ्रेंस आयोजित की जा रही है। वर्कशॉप में प्रशिक्षण लेने वाले चिकित्सक टॉक्सिकोलॉजी की उस शाखा में विशेषज्ञ हैं, जो टॉक्सिन और इनफेक्ट-बाइट संबंधित आपातकालीन स्थितियों के प्रबंधन से जुड़ी है। एम्स बिलासपुर के आपात विभाग में प्रतिदिन औसतन 6 टॉक्सिन और 5-6 सर्पदंश के मामले रेफर होते हैं।

ये सभी केस पीएचसी, सीएचसी, जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज से आते हैं। प्रशिक्षण का लक्ष्य है कि पीएचसी और सीएचसी स्तर पर प्रशिक्षित चिकित्सक उपलब्ध रहें। एम्स ने प्रदेश सरकार से आग्रह किया कि प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षित किया जाए। इसके बाद किन्नौर, लाहौल-स्पीति, मंडी, हमीरपुर, शिमला और बिलासपुर के पीएचसी और सीएचसी के 25 मेडिकल ऑफिसर इस वर्कशॉप में शामिल हुए हैं।

इसके साथ ही एम्स बिलासपुर के नर्सिंग अधिकारी, जूनियर और सीनियर रेजिडेंट भी प्रशिक्षण में भाग ले रहे हैं। उद्देश्य यह है कि अब प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रशिक्षित चिकित्सक मौजूद होंगे, जिससे मरीजों को गोल्डन ऑवर में जीवनरक्षक इलाज मिल सके। एम्स दिल्ली, जम्मू, ऋषिकेश, जोधपुर, बीबीनगर, मदुरई, कल्याणी, नागपुर, सीएमसी वेल्लोर, पीजीआई चंडीगढ़, डीएमसी लुधियाना, मीनाक्षी मिशन हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर, आईजीएमसी शिमला और टांडा के विशेषज्ञ यहां सिखाने के लिए पहुंचे हैं।

नौ एम्स के डेलीगेट्स ले रहे प्रशिक्षण
इस वर्कशॉप और आगामी कॉन्फ्रेंस में देशभर के नौ एम्स संस्थान, जिनमें भोपाल, जोधपुर, भटिंडा, जम्मू, मदुरई, कल्याणी, बीबीनगर, ऋषिकेश और नागपुर के 100 के करीब डेलीगेट्स शामिल हुए। साथ ही आईजीएमसी शिमला, टांडा, नेरचौक और हमीरपुर से पीजी विद्यार्थी भी प्रशिक्षण में भाग ले रहे हैं।

सिम्युलेशन आधारित प्रशिक्षण की खासियत
सभी डेलीगेट्स को हाई-एंड सिम्युलेशन पर आधारित रियल केस सिनेरियो का हैंड्स-ऑन अनुभव दिया गया। अगर सर्पदंश का मरीज आता है, तो किस क्रम में कौन-सी दवा दी जाए और प्राथमिक उपचार कैसे किया जाए, यह सभी गुर सिखाए गए। सिम्युलेशन में मरीज के बीपी, नाड़ी, पसीना, पुतलियां और पेशाब तक वास्तविक समय में सिम्युलेट किए गए। नकली सांप का उपयोग कर डेलीगेट्स को वास्तविक परिस्थिति का अनुभव कराया गया।
हिमाचल में सर्पदंश की स्थिति
राज्य के पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में हर साल सर्पदंश के लगभग 400 से 500 मामले सामने आते हैं। कई मामलों में उपचार में देरी होने के कारण जटिलताएं बढ़ जाती हैं। एम्स बिलासपुर का यह प्रशिक्षण कार्यक्रम इन परिस्थितियों को बदलने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।