खासकर जब वे मीडिया या न्यूज़ में आते हैं। यहाँ कुछ मुख्य कारण हैं:
1. *मानहानि और बदनामी से बचाव*: अगर कोई आरोपी बाद में बरी हो जाता है, तो उसकी पहचान छिपाने से उसे समाज में बदनामी से बचाया जा सकता है। कई बार गलत आरोप लगने पर भी मीडिया ट्रायल हो जाता है, जिससे व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा खराब हो सकती है।
2. *न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा*: भारतीय न्याय प्रणाली में आरोपियों को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक उन्हें अदालत द्वारा दोषी नहीं ठहराया जाता। आरोपियों की पहचान छिपाकर, मीडिया और समाज दोनों को यह याद दिलाया जाता है कि वे अभी भी कानून की नजर में निर्दोष हैं।
3. *सामाजिक बदला और प्रतिष्ठा की रक्षा*: कई मामलों में, आरोपियों के परिवार और उनकी सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उनकी पहचान छिपाई जाती है। अगर आरोपी बाद में निर्दोष साबित होते हैं, तो उनके परिवार को समाज में अपमानित नहीं होना पड़ता।
4. *कानूनी प्रावधान और गाइडलाइंस*: भारत में मीडिया को कई बार अदालत द्वारा निर्देश दिए गए हैं कि वे आरोपियों की पहचान तब तक न करें जब तक कि उन्हें दोषी नहीं ठहराया जाता। यह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य मीडिया गाइडलाइंस में भी शामिल है।
5. *मानवाधिकारों का सम्मान*: हर व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है, और अगर कोई व्यक्ति बाद में निर्दोष पाया जाता है, तो उसकी पहचान की सुरक्षा से उसके मानवाधिकारों का सम्मान होता है।
इन कारणों से मीडिया और अन्य संस्थाओं को सलाह दी जाती है कि वे आरोपियों की पहचान का खुलासा तब तक न करें जब तक कि न्यायालय द्वारा उन्हें दोषी नहीं ठहराया जाता।